ऋषिकेश 13 मई । ऋषिकेश परमार्थ निकेतन से देवप्रयाग तक आयोजित गंगा पथ यात्रा को स्वामी चिदानंद महाराज, जिलाधिकारी पौड़ी डॉ आशीष चौहान ने झंडी दिखाकर रवाना किया ।
यात्रा से पूर्व परमार्थ निकेतन में विश्व कल्याण और शांति की कामना को लेकर यज्ञ किया गया। इस दौरान पौड़ी के जिलाधिकारी आशीष चौहान ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा की यह यात्रा उत्तराखंड के विकास और लुप्त होती चारों धामों के यात्रा मार्गों पर पुरानी चट्टियों की पुरानी यादों को भी ताजा करने में सार्थक सिद्ध होगी। दरअसल, प्राचीन काल से ही ऋषिकेश से केदारनाथ तक पहुंचने के लिए पैदल मार्ग का इस्तेमाल किया जाता था।
इसकी शुरुआत ऋषिकेश के निकट मोहन चट्टी से होती थी। इस मार्ग से यात्रा ऋषिकेश से गंगा किनारे-किनारे पहाड़ों से होकर देवप्रयाग, श्रीनगर होते हुए रुद्रप्रयाग पहुँचती थी। यह बेहद ही दुर्गम था। जिलाधिकारी ने कहा कि पहले यात्रा मार्ग दुर्गम होने के कारण यात्री भिन्न भिन्न पड़ावों पर रात्रि विश्राम के लिए रुकते और फिर मिल जुलकर सभी तीर्थ यात्री आगे बढ़ते थे। इन्हीं पड़ावों को चट्टी कहा जाता था। इसलिए आप जब चारधाम यात्रा कर रहे होंगे तो हर धाम तक पहुँचने के दौरान कई चट्टियां मिलेंगी। जैसे बदरीनाथ मार्ग पर हुनमान चट्टी, केदारनाथ मार्ग पर गरुड़चट्टी, जंगलचट्टी आदि मिलेंगी ।
इस रुट से यात्रा दुर्गम होने के बावजूद तीर्थयात्री देश भर से आते रह हैं। लेकिन वर्ष 1928 आते आते ऋषिकेश से कीर्तिनगर तक मोटर मार्ग बन चुका था और फिर इस पैदल मार्ग का प्रयोग लगभग बंद हो गया। उन्होंने कहा कि गंगा पदयात्रा: पौराणिक मार्ग को पुनर्जीवित करने की पहल
के चलते ऋषिकेश से केदारनाथ तक के पौराणिक मार्ग को जीवंत किया जा रहा है। पौड़ी जिलाधिकारी डॉक्टर आशीष चौहान ने इसको पुनः मूल स्वरुप में लाने की पहल की है। इस योजना को गंगा पदयात्रा नाम दिया गया है।
इस योजना के अनुसार इस वर्ष से ऋषिकेश से देवप्रयाग तक पैदल चार धाम यात्रा शुरू होगी। आपको बता दें, ऋषिकेश से देवप्रयाग तक सड़क मार्ग से दूरी 73 किलोमीटर है। और इस पैदल से मार्ग से यह दूरी 67 किलोमीटर की होगी।
मार्ग ट्रेकिंग एवं एडवेंचर के शौक़ीन लोगों को भी आकर्षित करने के लिए तैयार किया गया है। पौड़ी जिलाधिकारी चौहान के अनुसार उन्होंने गंगा पदयात्रा शुरू किए जाने की योजना तैयार की है और वह खुद इस मार्ग पर 22 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि इस मार्ग पर प्रकृति और अध्यात्म का अनूठा संगम होगा। यात्री मां गंगा एवं प्रकृति की विविधता के एहसास को आत्मसात करते हुए यात्रा का आनंद उठा सकेंगे।
इससे रोजगार और स्वरोजगार के नए अवसर भी विकसित होंगे। इस यात्रा की शुरुआत साधु संतों के पहले जत्थे से की जायेगी।
यात्रा मार्ग की स्थिति
गंगा पदयात्रा का यह मार्ग 06 फीट चौड़ा होगा। यात्रा ऋषिकेश से लक्ष्मणझूला, गरुड़ चट्टी, फूल चट्टी, मोहन चट्टी, बिजनी, नौंठखाल (न्योडखाल), बंदर चट्टी (बांदर भ्येल), महादेव चट्टी, सिमालू (सेमल), नांद गांव, व्यासचट्टी (व्यासघाट), उमरासू, सौड़ व रामकुंड होकर देवप्रयाग पहुंचेगी।
यात्रा मार्ग कई जगह पर बदहाल स्थिति में है। कई स्थानों पर उसके विकास की आवश्यकता है जिसके लिए पहले चरण में 16 किमी का सुधारीकरण का कार्य होगा।
यात्रा मार्ग में कोटली भेल नामक एक पड़ाव में करीब 200 मीटर का ट्रैक चट्टान पर है जिसे उत्तरकाशी के गरतांग गली की तर्ज पर लकड़ी का पैदल मार्ग तैयार कर नये स्वरूप में विकसित किया जाएगा।
ऐतिहासिक तथ्य
स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवनकाल में कई बार उत्तराखंड की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने बद्रिकाश्रम क्षेत्र की यात्रा का भी लक्ष्य रखा था। उन्होंने इसी रूट से पदयात्रा शुरू की थी। लेकिन उस दौर में हैजा की महामारी चरम पर थी इसलिए उन्हें श्रीनगर से यात्रा बीच में ही छोड़कर लौटना पड़ा था। दूसरी बार भी वे आये लेकिन इस बार वे स्वयं बीमार पड़ गए और कर्णप्रयाग से लौट गये थे।
अब यह ‘गंगा पदयात्रा’ योजना चारधाम यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ने का कार्य करेगी। साथ ही इस कदम से यात्रा की मूल अवधारणा के पुनर्जागरण को भी बल मिलेगा। जिलाधिकारी ने बताया कि इस यात्रा में उनके साथ वन विभाग पर्यटन विभाग के अधिकारियों के अलावा लगभग 200 लोग शामिल है जिसका समापन शाम को देवप्रयाग संगम पर आयोजित आरती के उपरांत किया जाएगा।