ऋषिकेश, 4 अगस्त। परमार्थ निकेतन सेआया थाईलैंड से पर्यटकों का दल। दल के सदस्यों ने परमार्थ गंगा तट पर विधिविधान के साथ मुण्डन व गंगा पूजन कर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती का आशीर्वाद लिया।
उन्होंने बताया कि वे अक्सर परमार्थ निकेतन, उत्तराखंड की यात्रा पर आते हैं उन्होंने स्वामी चिदानन्द सरस्वती की प्रेरणा व आशीर्वाद से थाईलैंड में शिवमन्दिर निर्माण कराया है, जहां पर अपार संख्या में भक्त आते हैं और भारतीय संस्कृति के विषय जानने के लिये उत्सुक रहते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हमारे शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि ‘जन्मना जायेते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते’ अर्थात जन्म से सभी शुद्र होते है, संस्कारों के माध्यम से द्विजत्व प्राप्त होता है। वास्तव में संस्कारों के माध्यम से ही व्यक्ति श्रेष्ठ मानव जीवन की यात्रा करता है। संस्कारों के माध्यम से जीवन का परिमार्जन होता है और सामाजिक जीवन का मूल आधार तो आध्यात्मिकता हैं।
भारतीय संस्कृति में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है। निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करना ही भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है और यही मानवता की सेवा भी है। दुनिया में ऐसे कई महापुरूष हुये जिन्होंने दूसरों की सेवा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। प्रत्येक मनुष्य को गरिमापूर्ण जीवन देने, समाज के हर वर्ग और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार करने हेतु भारतीय सनातन संस्कृति का सूत्र ‘सेवा ही साधना है’ को अंगीकार कर हमारे ऋषियों और महापुरूषों ने जीवन मूल्यों का निर्माण किया।
स्वामी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में अहिंसा को नैतिक जीवन जीने का मूलभूत सिद्धान्त बताया है। यह केवल एक आदर्श नहीं है बल्कि यह हमारा एक प्राकृतिक नियम है।
भारतीय संस्कृति में मानवता और प्रकृति का कल्याण निहित है। वास्तव में हमें ऐसी संस्कृति को आत्मसात करना होगा जो परम्परागत होने के साथ ही उसमें धर्म, आध्यात्मिकता, मानवतावादी, सनातन संस्कृति और वैज्ञानिकता की सभी धाराएँ समाहित हो। एक ऐसा मार्ग खोजना होगा जिसमें धर्म, अध्यात्म एवं भौतिकता’ का उत्कृष्ट समन्वय हो। इसी समन्वय से मानव और प्रकृति के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।
स्वामी ने कहा कि आध्यात्मिक विकास के लिये हमें अपनी चेतना को विस्तार देना होगा। आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है प्रकृति के प्रति उदारतापूर्ण व्यवहार जो हमारी भारतीय संस्कृति का मूल है। पुनः उस मूल रूप अर्थात उदारता की नितांत आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति के जो आधारभूत मूल्य हैं संवेदना, सद्भाव, दया, करूणा, प्रेम, शांति, सहिष्णुता इन मूल्यों का प्रयोग हमें अपनी प्रकृति के साथ करना होगा।
थाईलैंड से आयो यानरावी चन्त्रकाद्मो, खंथारोस राडू, पावरिसा इंथाविसेडआर, सैटिड फियोई, कोचाना गाइटी आदि ने स्वामी से भेंट कर परमार्थ निकेतन में होने वाली विभिन्न गतिविधियों यथा प्रातःकाल योग, ध्यान, हवन, गंगा आरती और सत्संग में सहभाग किय।