ऋषिकेश,09 मई ।एम्स ऋषिकेश में मरीजों को अब किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा भी मिल सकेगी। केन्द्र सरकार से किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट के संचालन हेतु आवश्यक मंजूरी मिलने के बाद एम्स ऋषिकेश में गुर्दा प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू कर दी गई है।
हाल ही में यहां नैनीताल के एक 27 वर्षीय मरीज की किडनी प्रत्यारोपित कर उसे नया जीवन दिया गया है। यह इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकारी खर्च पर किया गया। एम्स ऋषिकेश उत्तराखंड का पहला सरकारी अस्पताल है जहां यह सुविधा शुरू हो गई है।
किसी व्यक्ति के शरीर की जब दोनों किडनियां काम करना बंद कर देती हैं तो उसे किडनी ट्रांसप्लांट ( गुर्दा प्रत्यारोपण ) की आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में शरीर के किसी ऑर्गन ( अंग ) ट्रांसप्लांट तकनीक की यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है। इस मामले में एम्स ऋषिकेश के यूरोलाॅजी, नेफ्रोलाॅजी और ऐनेस्थेसिया विभाग की संयुक्त टीम ने प्रत्यारोपण प्रक्रिया में सफलता हासिल की है।
उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में एम्स ऋषिकेश लगातार नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है। इसी कड़ी में बीते दिनों संस्थान के विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा किडनी फेलियर समस्या से ग्रसित एक 27 वर्षीय मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट कर उसे नया जीवन दिया गया। संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉ. मीनू सिंह ने गुर्दा प्रत्यारोपण करने वाले डाॅक्टरों की टीम को बधाई देते हुए कहा कि हमारे विशेषज्ञ चिकित्सकों के प्रयास से यह उपलब्धि हासिल हुई है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में एम्स दिल्ली के चिकित्सकों का भी सहयोग रहा। प्रोफेसर डाॅ. मीनू सिंह ने बताया कि मरीजों का जीवन बचाने के लिए एम्स ऋषिकेश प्रतिबद्ध है और निकट भविष्य में लीवर ट्रांसप्लांट सहित अन्य बीमारियों से संबन्धित ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा भी संस्थान में शुरू की जाएगी।
चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने ट्रांसप्लांट करने वाली टीम की प्रशंसा की और कहा कि एम्स ऋषिकेश उत्तराखंड का पहला सरकारी अस्पताल है जहां यह सुविधा शुरू की गई है।
गुर्दा प्रत्यारोपण करने वाली टीम के सदस्य और यूरोलाॅजी विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. अंकुर मित्तल ने इस संबन्ध में बताया कि गुर्दे की विफलता की स्थिति में गुर्दा प्रत्यारोपण ( किडनी ट्रांसप्लांट ) एक सुरक्षित विकल्प माना जाता है। उन्होंने बताया कि किडनी प्रत्यारोपण करने वाली टीम के लिए यह चुनौतीपूर्ण कार्य था लेकिन टीम वर्क से यह प्रक्रिया पूर्ण तौर से सफल रही और लगभग 3 घंटे तक चली प्रत्यारोपण प्रक्रिया के बाद 27 वर्षीय मरीज को उसके पिता की किडनी लगाई गई। ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को 19 अप्रैल से लगातार निगरानी में रखा गया था। उन्होंने बताया कि मरीज को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था। मरीज अब पूर्णरूप से स्वस्थ है और उसे शीघ्र ही अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। टीम में शामिल नेफ्रोलाॅजी विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. गौरव शेखर ने कहा कि एम्स ऋषिकेश में पहला सफल किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। उन्होंने कहा कि हीमोडायलेसिस करवाने वाले किडनी रोगियों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट की यह सुविधा किसी वरदान से कम नहीं है।
कब पड़ती है किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत
यूरोलाॅजिस्ट डाॅ. अंकुर मित्तल ने बताया कि किसी व्यक्ति की किडनी खराब हो जाने, किडनी के सही ढंग से काम न करने और नियमितौर पर डायलेसिस की जरूरत पड़ने पर किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी जाती है। उन्होंने बताया कि डायलेसिस की प्रक्रिया से रोगी के शरीर की नसों में संक्रमण की संभावना ज्यादा होती है और बार-बार डायलेसिस करवाने से मरीज का जीवन खराब हो जाता है। ऐसे में किडनी प्रत्यारोपण ही बेहतर विकल्प है।
टीम में यह विशेषज्ञ चिकित्सक रहे शामिल
एम्स यूरोलाॅजी विभागाध्यक्ष डाॅ.अंकुर मित्तल, डाॅ.विकास पंवार और डाॅ. पीयूष गुप्ता, नेफ्रोलाॅजी विभागाध्यक्ष डाॅ.गौरव शेखर, डाॅ. शेरोन कंडारी और डाॅ. संदीप सैनी, ऐनेस्थेसिया विभाग के डाॅ.संजय अग्रवाल, डाॅ. वाई.एस. पयाल और डाॅ. प्रवीन तलवार शामिल थे।
एम्स दिल्ली के चिकित्सकों का मिला सहयोग
ट्रांसप्लांट के लिए एम्स दिल्ली की ट्रांसप्लांट टीम के विशेषज्ञ चिकित्सकों को बतौर मार्गदर्शन के लिए बुलाया गया था। इस टीम में एम्स दिल्ली की ट्रांसप्लांट टीम के प्रो. वीरेन्द्र कुमार बंसल, प्रो. संदीप महाजन, प्रो. लोकेश कश्यप, डाॅ. संजीत सिंह और डाॅ. राजेश्वर सिंह शामिल थे।
पिता ने दी बेटे को किडनी
जिस मरीज की किडनी ट्रांसप्लांट की गई है वह मात्र 27 वर्ष की उम्र का है। युवक के पिता ने बेटे की जिन्दगी बचाने के लिए अपनी किडनी दान दी है। मरीज के पिता लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि उनके परिवार में 4 लोग हैं और परिवार की सामुहिक राय के बाद यह निर्णय लिया गया।