ऋषिकेश,5 सितंबर। असम के बाद 24 वर्ष की तरुणाई पर आए देव भूमि उत्तराखंड राज्य में अगले कुछ सालों में जनसंख्या असंतुलन सबसे बड़ी समस्या बनने जा रही है,उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने भी इस समस्या को असम की तरह गंभीरता से लिया है, तेजी के साथ बदलती उत्तराखंड की डेमो ग्राफी को रोकने के लिए राज्य सरकार ने राज्य में हो रहे लैंड जिहाद को रोकने के लिए जंगलों और सरकारी जमीनों पर बनाई गई मजारों के विरुद्ध अभियान चलाया,उसी प्रकार भविष्य में कुछ कड़े फैसले ले सकती है।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल राज्य की स्थापना 1971 में हुई तब से लेकर अब तक मुस्लिम आबादी दो प्रतिशत के ही आसपास है। हिमाचल में भू कानून की वजह से मुस्लिम आबादी का विस्तार नहीं हो पाया और यही कारण है कि आज तक कोई मुस्लिम विधायक हिमाचल विधानसभा में नहीं पहुंच पाया।
जबकि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी वोटों की राजनीति के चलते सोलह प्रतिशत तक हो जाने का अनुमान है। 2000 में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में मुस्लिम आबादी डेढ़ प्रतिशत के आसपास थी।
उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी असम के बाद सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ी है। इस बढ़ती आबादी को राज्य में जनसंख्या असंतुलन की समस्या माना जा रहा है। वर्तमान में उत्तराखंड की जनसंख्या करीब 1.22 करोड़ अनुमानित है। पहाड़ों से घिरे इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 53483 वर्ग किमी है। उत्तराखंड में कुल मिलाकर 13 जिले बनाए गए हैं। बता दें कि उत्तराखंड 9 नवंबर 2000 को यूपी से अलग होकर राज्य बना था। लेकिन अब उत्तराखंड के मैदानी जिलों के सामाजिक और राजनीतिक समीकरण ऐसे हो गए है कि यहां मुस्लिम वोट निर्णायक हो गए है। यहां बीजेपी के लिए सीट निकालना स्वप्न जैसा है।
उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में हरिद्वार में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी हो गई है, यहां कुल आबादी का करीब 34 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिम है, इसी तरह उधम सिंह नगर जिले में भी 32 फीसदी,नैनीताल जिले और देहरादून जिले में तीस -तीस प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, और अब पौड़ी जिले के मैदानी क्षेत्रों में भी मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ने लगी है।
उल्लेखनीय है कि 2001 में राज्य के पहाड़ी जिलों में मुस्लिम आबादी डेढ़ प्रतिशत थी , हरिद्वार जुड़ जाने से यहां मुस्लिम आबादी ने तेज़ी से विस्तार पाया ,2011 में 13.9 प्रतिशत थी और अब 2022 में इसके 16 प्रतिशत से ज्यादा हो जाने का अनुमान है।
यूपी से लगे हरिद्वार नैनीताल उधम सिंह नगर और देहरादून जिलों में ,यूपी -बिहार- झारखंड- असम -बंगाल के मुस्लिमों ने बसावट कर ली।
उत्तराखंड भारत में असम के बाद सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी वाला राज्य हो गया है। केरल और बंगाल में मुस्लिम आबादी वृद्धि दर देवभूमि उत्तराखंड से कम है।
बात करे हिमाचल जिसकी भगौलिक सरंचना उत्तराखंड से मेल खाती है, सांस्कृतिक दृष्टि से हिमाचल को भी देव भूमि कहा जाता था है और उत्तराखंड को भी देव भूमि का दर्जा प्राप्त है।
25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था। तब यहां मुस्लिम आबादी कुल राज्य की आबादी का दो प्रतिशत से कुछ कम थी और आज भी यह आबादी प्रतिशत 2.1प्रतिशत ही है और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह हिमाचल का भू कानून है ।इस कानून की वजह से राज्य से बाहर का कोई भी व्यक्ति यहां जमीन नहीं खरीद सकता, अलबत्ता उसे लीज पर ले सकता है। इस कानून की वजह से हिमाचल में अभी तक हिंदू आबादी वाले राज्य के रूप में संरक्षित है।
2001में हिमाचल में मुस्लिम आबादी 119512 दस साल बाद यानि 2011में 149881और अब 2022 में इसके 163820 हो जाने का अनुमान है।
हिमाचल की तुलना में उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी ने भू कानून नही होने की वजह से पांव पसार लिए है। हर दस साल में दो प्रतिशत मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर दर्ज हो रही है। असम में हर दस साल में 3.3 प्रतिशत मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, जबकि केरल में 1.9 और बंगाल में 1.8 प्रतिशत की वृद्धि दर है। यह वह आबादी है जोकि उत्तराखंड के जनसंख्या रजिस्टर में दर्ज होगी,अभी यहां लाखों की संख्या में बाहरी राज्यों से आए मुस्लिम लोग किराए पर रह रहे है।
और धीरे धीरे वह भी यहां स्थाई निवासी हो जाने है ,क्योंकि यहां उनके बसने में हिमाचल की तरह कोई रोक टोक नहीं है। जिसके लिए राज्य प्रशासन की राजस्व विभाग की भ्रष्ट कार्य प्रणाली भी एक बड़ी वजह है। जो फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मुस्लिम आबादी को यहां बसने दे रही है।इसके उदाहरण देहरादून जिले में ही मिल जाएंगे।
मुस्लिम आबादी में अवैध मदरसों,मस्जिदों की भरमार हो गई है, सरकारी जमीनों पर कब्जे हो चुके है। यहां तक की जंगल की जमीनों पर भी अवैध रूप से मुस्लिमो ने अंदर तक जाकर कब्जे कर लिए है और वहां से बहुमूल्य वन संपदा का दोहन किया जा रहा है।
मुस्लिम आबादी में यूपी -बिहार के लोग तो है, ही जानकारी के मुताबिक बड़ी संख्या में बंगलादेश और म्यांमार से आए रोहिंग्या भी बसते जा रहें है। यह लोग पहले असम,बंगाल ,झारखंड से अपने आधार कार्ड बनवाते है, फिर उत्तराखंड आकर, यहां के मुस्लिम जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में बसावट कर रहे है। मुस्लिम जनप्रतिनिधियों को राजनीतिक संरक्षण मिला रहता है वो इन्ही के दम पर विधानसभा में पहुंचते रहे है।
पंचजन्य के ब्यूरो दिनेश मानसेरा की जानकारी के मुताबिक कभी उत्तरकाशी में मुस्लिम वोटर संख्या 150 के आसपास हुआ करती थी और यह अब 5000 से भी ज्यादा हो गई है।
देहरादून के विकास नगर में 6000 मुस्लिम वोटर हुआ करते थे, जो अब 32हजार हो गए हैं।
हरिद्वार जिले में कुंभ क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो चारो तरफ मुस्लिम आबादी नजर आती है।
उधम सिंह नगर जिले में यूपी से लगते सीमा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी ने डेरा डाल दिया है, देहरादून में सेलाकुई ,विकासनगर ,सहसपुर क्षेत्र जो यूपी के सहारनपुर जिले से लगता है, मुस्लिम बाहुल्य हो चुका है,यहां तक की धर्म नगरी ऋषिकेश जहां कभी कोई मुस्लिम नहीं रहता था। अब शहर के चारो तरफ यही समुदाय रह रहा है। नैनीताल जिले ,रामनगर , हल्द्वानी शहर में मुस्लिम आबादी ने नदियों के किनारे सरकारी वन और रेलवे की जमीनों पर कब्जे कर घर बसा लिए है।नैनीताल शहर में ही मुस्लिम आबादी ने करीब दस गुना की वृद्धि कर ली है।
उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित भू कानून विशेषज्ञ समिति के सदस्य अजेंद्र अजय के मुताबिक देव भूमि का स्वरूप बचाए रखने के लिए ,जनसंख्या असंतुलन बनाए रखने के लिए हिमाचल प्रदेश की तरह सख्त भू कानून की जरूरत है, अन्यथा यह उत्तराखंड राज्य सीमा वर्ती राज्य होने की वजह से आंतरिक सुरक्षा जैसी समस्याओं से घिरता ही जायेगा।
राजनीति के जानकर विनय कोहली बताते है उत्तराखंड में अब बारह से पन्द्रह विधान सभा सीट ऐसी है, जहां बीजेपी कभी चुनाव नही जीत पाएगी, जिनमें हरिद्वार जिले की ज्वालापुर,उधम सिंह नगर की जसपुर, नैनीताल की हल्द्वानी सीट भी शामिल है।
धीरे धीरे मुस्लिम वोटर्स बढ़ रहे है, जो कभी भी बीजेपी को वोट नहीं देते है। यानि जनसंख्या असंतुलन से सबसे ज्यादा उत्तराखंड की राजनीति प्रभावित होने वाली है।
राज्य की बीजेपी सरकार को अब इस बात की चिंता सताने लगी है, कि जल्दी ही कोई कानून नहीं बनाए गए तो राज्य का मूल देव स्वरूप कहीं बिगड़ न जाए। सरकार ने भू कानून में सुधार के लिए एक समिति भी बनाई हुई है। जिसके द्वारा दिए गए सुझावों पर सरकार को अमल करना है।