ऋषिकेश, 18जून।निर्जला एकादशी के दौरान श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी घाट पर गंगा स्नान कर गरीबों में दान-पुण्य किए जाने के साथ पंखा और सुराई का दान भी किया। वहीं सामाजिक संस्थाओं द्वारा नगर में जगह-जगह मीठे शरबत की छबिलियां लगाकर रहागीरों को मीठा सर्वाधिक पिलाया गया।
पंडित वेद प्रकाश शास्त्री ने कहा कि निर्जला एकादशी को साल की सभी 24 एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। कोई व्यक्ति अगर साल की सभी एकादशियों के व्रत नही रख पातें है तो उन्हें सिर्फ निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेना चाहिए। इससे सभी एकादशियों के व्रतों का फल एक साथ मिल जाता है। इस एकादशी पर पांडव पुत्र भीम ने व्रत रखा था इसी कारण इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत की विधि:-
निर्जला एकादशी के व्रत करने वाले साधक को दशमी तिथि से ही व्रत की सभी तैयारियां कर लेनी चाहिए।
निर्जला एकादशी के व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन बहुत जरूरी है। इस बात का विशेष ध्यान रखें।
निर्जला एकादशी के दिन साधक को गंगा नदी में स्नान अवश्य करना चाहिए। इसके बाद हाथ में जल लेकर निर्जला एकादशी के व्रत का संकल्प करना चाहिए।
व्रत के लिए पीली चौकी या किसी चौकी पर साफ पीले रंग का वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करके उन्हें प्रणाम करें।
भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद लाल पुष्प की माला , अक्षत , फल व नैवेध भगवान विष्णु को जरूर अर्पण करें।
भगवान विष्णु के ‘ऊं नमो वासुदेवाय’ का जाप या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।
निर्जला एकादशी के दिन गाय का दान करना बहुत लाभकारी माना जाता है। इसलिए गौ -दान अवश्य करें।
निर्जला एकादशी के पूरे दिन व्रत के नियमों का पालन करें और रात भगवान विष्णु का कीर्तन करें ।
द्वादशी को प्रात: काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करकर भगवान विष्णु की पूजा करें । पूजा में तुलसी का प्रयोग अवश्य करें।
इसके बाद व्रत का समापन मतलब पारण करना चाहिए।
कोई भी व्रत तब तक पूरा नहीं होता जब तक की दान न दिया जाए। इसलिए किसी निर्धन व्यक्ति या किसी ब्राह्मण को कपड़े, छाता, दूध, फल, तुलसी पत्तियां आदि दान करें यह शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी के दिन चावल का उपयोग (घर मे अन्य सदस्यों को जो व्रत नही है)नही करना एवं खाना सख्त मना होता है।वैसे भी किसी भी एकादशी को चावल घर मे नही बनाना चाहिए।
व्रत करने वाले साधक के लिए जल का सेवन करना निषेध है परंतु इस दिन मीठे जल का वितरण करना सर्वाधिक पुण्यकारी है।
निर्जला एकादशी को भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने और व्रत रखने से जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है।
निर्जला एकादशी पर व्रत रखने से चंद्रमा द्वारा उत्पन्न हुआ नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है।कुंडली मे विषयोग,ग्रहण योग और अमावस्या दोष से हो रहे पीड़ा में लाभकारी होता है। उपवास रखने से ध्यान लगाने की क्षमता भी बढ़ती है।